Parenting Communication Tips

Parenting Communication Tips: माता-पिता और बच्चों के बीच संवाद की अहमियत

Parenting Communication Tips: माता-पिता और बच्चों के बीच संवाद की अहमियत

Parenting Communication Tips – आज के समय में, बच्चों के साथ संवाद और गाइडेंस का तरीका हर उम्र में बदलता है। पांच से सात साल के बच्चों से लेकर टीनएजर्स तक, संवाद का तरीका और विषय अलग-अलग होते हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि माता-पिता और बच्चों के बीच संवाद हमेशा खुला और निरंतर होना चाहिए।

धैर्य और समझ की अहमियत

आज की दुनिया में, जहां त्वरित संतुष्टि की संस्कृति ने जगह बना ली है, वहां बच्चों को अपनी भावनाओं को समझने और धैर्य रखने का महत्व सिखाना और भी जरूरी हो गया है। बच्चों को यह समझाना कि हर भावना महत्वपूर्ण होती है, उन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।

शिक्षाविद अर्तिका अरोड़ा बख्शी की राय

अर्तिका अरोड़ा बख्शी, जो बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करती हैं, अपनी किताब “माई लिटिल हैंडबुक ऑफ फीलिंग्स” में बच्चों के अंतर्मन को समझने की कोशिश करती हैं। वह बच्चों के सवालों का तार्किक जवाब देने की महत्ता पर जोर देती हैं।

बच्चों के सवालों का तार्किक जवाब दें

बच्चे अक्सर सवाल करते हैं, और माता-पिता का कर्तव्य है कि वे उन्हें बिना टाले उनके सवालों का सही और तार्किक उत्तर दें। अर्तिका कहती हैं, “अगर हम बच्चों के सवालों का सही उत्तर नहीं देंगे, तो वे दूसरों से जानकारी प्राप्त करेंगे, जो जरूरी नहीं कि सही हो।” विशेषकर उन बच्चों को जो “पीजी” (पेरेंटल गाइडेंस) लेबल वाली फिल्में देखते हैं, उनके बारे में सही समझ देना जरूरी है।

पैरेंटिंग एक ट्रायल एंड एरर प्रक्रिया है

पैरेंटिंग एक लगातार सीखने और सुधारने की प्रक्रिया है। कोई भी माता-पिता यह दावा नहीं कर सकता कि वे 100% सफल हैं, क्योंकि हर बच्चे की जरूरत और व्यवहार अलग होते हैं। जैसा कि अर्तिका कहती हैं, “हमारा एक्शन और परिणाम रोज़ बदलते हैं, और हमें लगातार अपने पेरेंटिंग के तरीके को अनुकूलित करना पड़ता है।”

टीचिंग और पैरेंटिंग का मिलाजुला तरीका

अर्तिका मानती हैं कि अगर टीचर्स अपने पेरेंटिंग कौशल को शिक्षा में शामिल करें, तो यह बच्चों के लिए अधिक लाभकारी हो सकता है। माता-पिता और शिक्षकों के बीच संवाद, विशेष रूप से पैरेंट-टीचर मीटिंग्स, बच्चों की जरूरतों को समझने और उन्हें बेहतर तरीके से मार्गदर्शन देने में सहायक हो सकती हैं।

डिजिटल सामग्री पर नियंत्रण

आजकल बच्चों के सामने आने वाली हिंसक या अनुपयुक्त डिजिटल सामग्री पर माता-पिता को सतर्क रहना चाहिए। अर्तिका कहती हैं, “माता-पिता को बच्चों के डिजिटल दुनिया में सक्रिय रूप से भूमिका निभानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे जो देख रहे हैं, वह उनकी उम्र और मानसिकता के अनुसार उपयुक्त है।”

तनाव और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान

बच्चों में बढ़ते तनाव और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर अर्तिका ने चिंता व्यक्त की है। वह कहती हैं, “बच्चों से नियमित संवाद उनके मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बना सकता है। अगर माता-पिता अपने बच्चों से ईमानदारी से बात करते हैं, तो वे तनाव और आत्महत्या जैसी गंभीर समस्याओं का सामना कर सकते हैं।”

अर्थात, बच्चों के साथ सही तरीके से संवाद करके, उनके सवालों का तार्किक उत्तर देकर और उनकी भावनाओं को समझकर हम उन्हें एक मजबूत और आत्मविश्वासी इंसान बना सकते हैं।

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